""सूर्य ग्रहण''
( आषाढ़ मास कृष्णपक्ष अमावस्या तिथि )
21 जून रविवार को खंडग्रास सूर्यग्रहण है अतः इस ग्रहण का नियम पालन करना आवश्यक होगा।
ग्रहण स्पर्श( प्रारम्भ ):-
प्रातः 9:30
ग्रहण मोक्ष(समाप्त):
दोपहर 03:05
सूतक:-
20 जून शनिवार को रात 10.00 से 21 जून रविवार दोपहर 3:05 तक।
ग्रहण काल मे ध्यान रखने योग्य बातें :-
क्या करें :-
सूतक काल मे भगवान के मंदिर के पट बंद कर देवे किसी भी प्रकार की मूर्ति को स्पर्श पूजन पाठ नहीं करनी चाहिए।
सूतक लगने से पहले घर मे रखें खाद्य सामग्री (बिना बनी हुई) में कुशा या तुलसी के पत्ते रख देवें।उपयोग के जल में भी तुलसी दल या कुशा डाले।
ग्रहण प्रारम्भ होने से पहले स्नान अवश्य करे ।
ग्रहण लगने पर अपने इष्ट देव का ध्यान करें,गुरु मंत्र का जप करे, आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करे।महामृत्युंजय मंत्र का जप करे, गायत्री मंत्र का जप करे।
प्रभु भजन करे।उपरोक्त में से कोई भी एक जप करे।
ग्रहण के समय अन्न धन वस्त्र आदि दान का संकल्प करें व ग्रहण समाप्ति पर इनका दान करें।गाय माता को हरा चारा खिलावें।
बने हुए भोजन को बिल्कुल भी उपयोग न करे व उसे बाहर रख देवें व ग्रहण समाप्ति पर स्नान करके ताजा भोजन बनावे व उसे खाए।
ग्रहण के समय किए गए जप, यज्ञ, दान आदि का सामान्य की अपेक्षा बहुत अधिक महत्व वर्णित है।
क्या न करें :-
ग्रहण काल मे यात्रा करना,भोजन करना , भगवान को स्पर्श, पेड़ पौधे तोड़ना, काटना सिलना, पशु आदि की सवारी, सोना आदि न करे।
सूतक काल मे मांस मदिरा का सेवन न करे बह्मचार्य का पालन करें।
ग्रहण के दौरान विशेषकर गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं का विशेष ध्यान रखे, इन्हें ग्रहणकाल मे घर मे ही रखे। ग्रहण काल मे गर्भवती महिलाएं अपने मुख में एक तुलसी का पत्ता रख लेवे व
"" नारायण-नारायण ""या "" ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "" का जप करे।
ग्रहण समाप्ति के पश्चात जल में गंगाजल डालकर स्नान करें व पूरे घर का गंगाजल से शुद्धिकरण करे।
विशेष :- आप अपनी मनोकामनाओं या समस्याओं के निवारण हेतु भी जप कर सकते है।
ग्रहण के समय मे जप तप दान आदि का सहस्त्र गुना पुण्य मिलता है।
""मुक्तौ यस्तु न कुर्वीत स्नानं ग्रहण सूतके।
स सूतकी भवेत्तावरत् यावत्स्यादपरो ग्रहः।।
अर्थात-जो मनुष्य ग्रहण पश्चात में स्नान नहीं करता वह तब तक सूतक ही रहता है जब तक दोबारा कोई ग्रहण नहीं पड़ता अतःग्रहण के प्रारम्भ में भी स्नान करे एवं ग्रहण के अंत मे भी स्नान करे।
*ग्रहण दोष :-किसी भी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में किसी भी भाव में जब सूर्य या चंद्रमा के साथ राहू और केतु में से कोई भी एक ग्रह उपस्थित होता है तो ग्रहण दोष बनता है।*
*ग्रहण दोष निवारण की पूजा का संकल्प भी इस काल मे किया जाता है।*
अधिक जानकारी के लिए आप संपर्क कर सकते है।
कल्याण होगा।
जय श्री महाकाल।
भाग्यचक्र उज्जैन
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शुभम भवतु !
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