Wednesday, June 17, 2020

एकादशी 17।6।2020 - योगिनी एकादशी ( Yogini Ekadashi )


धन एवं भोग प्राप्त कराने वाली योगिनी एकादशी-
दिनांक १७ जून २०२० बुधवार को आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। ब्रह्मवैवर्त पूराण के अनुसार इस व्रत को करने वाले को भोग, लक्ष्मी एवं सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। शिवभक्त मार्कडेण्य मुनि ने  यक्ष हेममाली को इस व्रत के संबंध में यही बताया था।
हेममाली कुबेर का सेवक था, तथा वह कुबेर के लिए नित्य शिवपूजा के पुष्प मानसरोवर से लेकर आता था। अपनी पत्नि के साथ समय बिताने के लिए वह एक दिन पुष्प लाने में देरी कर बैठा, तथा कुबेर के शाप से कोढ़ी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, तथा इस योगिनी एकादशी का व्रत कर वापस सुख, संपत्ति एवं पत्नि को प्राप्त करने में सफल हुआ।
इस व्रत में मीश्री, तरल पदार्थ एवं दुध एवं दुध से बनी मिठाईयों का फलाहार में प्रयोग होता है। यह व्रत वर्षाकाल में आरंभ में आता है। यह नई वनस्पतियों के आनें का समय भी होता है। इस काल में कई जीवाणुओं का जन्म होता है, जो स्वास्थ्य के हानिकारक होते है। अत: इस व्रत को रखकर संयम से एक दिन का आहार त्याग किया जाता है। जो आने वाले समय में स्वास्थ्य को सुरक्षित रखता है। स्वस्थ्य व्यक्ति ही धन की वृद्धि करने एवं उपभोग करने में सक्षम हो पाता है। भगवान विष्णु के साथ, यह व्रत शिव को भी प्रसन्न करने वाला होता है।
योगिनि एकादशी ऐसा व्रत है। जो हरिवासर सद्भाव में मनाया जाता है।  इस व्रत को करने से वह पाप भी निर्मुल हो जाते है। जो अनजाने में किए हो। जैसें पंाव के नीचे दबनें से, या अग्रि प्रज्वलित करने से, रस्तें में चलते वक्त किसी किड़े या जीव जंतु पर आघात हो जाना। पीपल वृक्ष को काटना, घर के अंदर बने हुए पक्षीयों या मकडिय़ों के जालों को नष्ट करना, गाय या अन्य जानवर को बचपन में, या नादानी में पत्थर मारना। अश्लिल शब्दों के प्रयोग, किसी का खोया हुआ सामान या धन नहीं लौटाना। अकारण किसी का अपमान करना। बुजुर्गों या संतों के प्रति किया गया अपमान। अनजानें मे किए हुए पापों को दूर करने के लिए इस दिन रात में भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी की रात्री में पूजन आरती करना चाहिए। किसी  जरुरतमंद स्त्री को अन्न, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
इस व्रत को करने से अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों  को भोजन कराने के बराबर का फल प्राप्त होता है, तथा यह व्रत पांच ज्ञान की, पांच कर्म की इन्द्रियों के साथ एक मन को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

नारायण नारायण

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