Wednesday, October 16, 2019

करवा चौथ की कथा पूजन विधि पूजन सामग्री शुभ मुहूर्त एवं ध्यान रखने योग्य बातें ( Karva choth ki katha Pujan Vidhi Pujan samagri evm dhyan rakhne yogy baten )

कथा सुनने के लिए नीचे Click करें।
https://youtu.be/phdtf7FK1WAकरवा चौथ व्रत कथा पूजन विधि एवं ध्यान रखने योग्य बातें।




करवा चौथ।।

करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी को किया जाता हैं। इस वर्ष करवा चौथ 17 अक्टूबर 2019 गुरुवार को मनाया जाएगा। महिलाएं यह व्रत अपने पति के दीर्घायु, उनके स्वास्थ्य तथा उनकी मंगलकामना के लिए करती है।

इस दिन सुहागन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत करती है। एवं संध्या को चन्द्रोदय के पश्चात पूजन करके इस व्रत को पूरा करती है।

वैसे तो सनातन धर्म मे बोहत सारे व्रत है लेकिन करवा चौथ के व्रत का एक विशेष स्थान है, चुकी अब यह सिर्फ एक व्रत न होकर एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। मान्यता है के करवा चौथ का व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस वर्ष करवाचौथ के दिन ७० वर्षो के बाद मंगलयोग बन रहा है। जो कि अत्यधिक फल देने वाला है।

करवाचौथ का व्रत दीपावली से नो दिन पहले मनाया जाता है, पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की चतुर्थी को या व्रत किया जाता है।

शुभ मुहूर्त :-

तिथि: कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी
तारीख: 17 अक्टूबर
दिन: गुरुवार
पूजा मुहूर्त: शाम 5.50 से 07.05 बजे तक
अवधि: 01 घंटा 15 मिनट
व्रत समय: सुबह 06.23 बजे से रात 08.16 तक
कुल अवधि: 13 घंटे 53 मिनट
चंद्रोदय का समय: रात 8.16 बजे।



पूजा की सामग्री :-

करवा, जल का पात्र, गंगाजल, रोली,मोली,कुमकुम,अक्षत,फल,फूल, मिठाई, चाँवल, हल्दी, घी का दीपक, धूपबत्ती, पंचामृत, सुहाग का सामान ( चूड़ी,बिंदी,मेहदी, कंघी, सिंदूर,बिछिया आदि ),छलनी, आसन, अठावरी ( आठ पुरियों की ), हलुआ,दक्षिणा आदि।

पूजन विधि :-

सर्वप्रथम सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर तत्पश्चात निम्नलिखित मंत्र द्वारा पूजा के लिए, व्रत का संकल्प ले -
"" मम सुखसोभाग्य पुत्रपोत्रादि सुस्थिर, लक्ष्मी प्राप्तये करवा चौथ व्रत महं करिष्ये ""
सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करें तत्पश्चात व्रत प्रारम्भ करें।

पूरे दिन निर्जला रहे।

दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आज कल बाजार में इसका बना बनाया चित्र भी मिल जाता है।

आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठे में हलुआ बनाएं। ओर अन्य पकवान बनाएं।

पीली मिट्टी से गौरी माता बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।

गौरी माता की प्रतिमा  को लकड़ी के आसन पर बिठाएं।  गौरी माता को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग के समान से गौरी माता का श्रृंगार करें।

जल से भरा हुआ लोटा रखें।

वायना देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।

अब रोली से करवे पर स्वस्तिक बनाएं।

तथा गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। तथा अपने पति की दीर्घायु की कामना करें।
तथा निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करे।

"'ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥""

अब करवे पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।

कथा सुनने के बाद करवे पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।


ध्यान रखने योग्य बातें :-

करवा चौथ के व्रत को करने वाली महिलायें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें। सबसे पहले तो व्रत आैर पूजा मंगलसूत्र अवश्य धारण करें। साथ ही पूजा के समय बाल खुले न रखे। ये व्रत निर्जल करने का विधान है अतः भोजन के साथ जल का भी त्याग करें ( विशेष परिस्थितियों जैसे गर्भावस्था या बीमारी के दौरान दवार्इ खाने की अनिवार्यता के चलते ही फल, दूध आैर जूस आदि ग्रहण करना चाहिए ) बच्चों को मारने आैर डांटने से बचना चाहिए। भूल कर भी बातचीत में अपशब्दों का प्रयोग ना करें। दीपक को तुरंत ना बुझायें।

करवा चौथ व्रत कथा :-

करवाचौथ से जुड़ी कर्इ कथायें हैं पर उनमें से सर्वाधिक प्रचलित सात भाइयों की एक बहन की कथा है,

करवा चौथ की कथा :-

करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन घर में साहूकार की पत्नी, बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के दिन घर में पकवान बनें, सभी खाने के लिए बैठे। उस समय चांद नहीं निकला था। जिसकी वजह से घर के सिर्फ पुरुष खाना खाने के लिए बैठ गए। रात के समय में सभी भाई खाना खाने बैठ गए। उन्होंने अपनी बहन को भी खाने के लिए बुलाया लेकिन उनकी बहन ने खाने से इंनकार कर दिया और कहा चांद निकलने पर पूजा करके ही वह खाना खाएगी।

बहन की बात सुनकर सभी भाई मिलकर बाहर  गए और वहां जाकर एक वृक्ष पर आग लगा दी और उस आग को छलनी में दिखाकर कहा कि बहन आ जाओ  चांद निकल आया है। आकर पूजा करके अपना व्रत खोल लो। लेकिन सभी भाभियां ये जानती थी की वह सभी भाई बहन के साथ धोखा कर रहे हैं। उन्होंने अपनी नंद को ये बात बताई भी लेकिन उसने अपनी भाभियों की बात पर विश्वास नहीं किया।

इस तरह उसका व्रत टुट गया और भगवान गणेश जी उस पर क्रोधित हो गए। इसके बाद अगली करवा चौथ पर उसका पति बीमार पड़ गया। उसने अपने पति का बहुत इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो पाया। जिसके बाद उसे यह अहसास हो गया की यह सब करवा चौथ का व्रत टुटने के कारणवश ही हुआ है। इसके बाद उसने भगवान गणेश जी की विधिवत पूजा की और गणेश चतुर्थी का व्रत रखा।जिससे भगवान उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को स्वस्थ जीवन दान दे दिया।
भगवान से प्रार्थना करे अपने पति की लंबी आयु के लिए अपने घर परिवार में सुख समृध्दि के लिए।

तत्पश्चात :-

13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।


रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से अपने पति को देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
अर्घ्य देते वक्त पति की लंबी आयु की कामना करें।

इसके बाद पति से तथा परिवार के बड़े बुजर्गों से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।


पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।

करवा चौथ व्रत कथा पूजनविधि एवं ध्यान रखने योग्य बातें।

जय श्री महाकाल।
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